Saturday, November 23, 2024
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खिचड़ी और मकर संक्रांति में सम्बन्ध–उदय राज मिश्रा

अंबेडकर नगर। प्रतिवर्ष माघ महीने में जिस दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं,उसदिन को सनातन काल से मकर संक्रांति नाम से प्रमुख महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।इस दिन सूर्य थोड़ा सा उत्तर दिशा में ढलता है यही कारण है कि इसे उत्तरायण पर्व के नाम से भी जाना जाता है।किंतु उत्तर भारत में मकर संक्रांति को मुख्यतः खिचड़ी नाम से उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।आखिर इस पर्व का नाम खिचड़ी क्यों पड़ा?यह एक चिंतनीय प्रश्न औरकि सनातन प्रेमियों के हृदय में कौतूहल का विषय है।

      मकर संक्रांति और खिचड़ी के बीच अन्योन्याश्रित सम्बन्ध का मुख्य कारण गोरक्षनाथ मंदिर और 14 वीं शताब्दी में मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुई भयंकर लड़ाई है।ज्ञातव्य है कि अलाउद्दीन खिलजी ने गुरु गोरक्षनाथ के ध्यान स्थल पर आक्रमण करके उस समय के मंदिर को नष्ट कर दिया था किंतु नाथ योगियों ने मुगल सेना का डटकर सामना किया और नाजुक परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी।उस समय युद्ध के दौरान खराब भोजन के चलते नाथ योगियों की सेना का स्वास्थ्य गिरने लगा तब योगी गोरक्षनाथ ने उन्हें चावल,उड़द और आलू को एक साथ पकाकर खाने की सलाह दी।इसप्रकार इस मिश्रण को खाने पर जहां नाथ योगियों को नई ऊर्जा मिलनी शुरू हुई वहीं भोजन उन्हें रुचिकर भी लगा।गुरु गोरक्षनाथ ने अपने योगियों की सेना के लिए ऐसा भोजन मकर संक्रांति के दिन से ही बनाने को कहा था।यही कारण है कि चावल,उड़द या अरहर की दाल व आलू आदि को एकसाथ मिलाकर बनाया गया भोजन तबसे खिचड़ी कहलाने लगा और इस दिन को कालांतर में खिचड़ी नाम से ही जाना जाने लगा।आज भी गोरखपुर स्थित गोरक्षनाथ मंदिर में खिचड़ी से लेकर एकमाह तक चलने वाला खिचड़ी मेला प्रतिवर्ष आयोजित होता है।जिसमें भारत तथा नेपाल सहित विदेशों से भी लोग आकर मंदिर में खिचड़ी चढ़ाते हैं।

    इस पर्व की महत्ता यूँ तो जगविश्रुत है तथापि जनसामान्य के लिए आवश्यक है कि वह अपने लोकमहत्त्व के महापर्व के बारे में अवश्यमेव विज्ञ हो।मकर संक्रांति की महत्ता के विषय में गोस्वामी तुलसी ने मानस में लिखा है-

माघ  मकरगत  रवि जब होई।

तीरथपतिहिं  आव  सब कोई।।

देव  दनुज  नर  किन्नर  श्रेनी।

सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।।

     कदाचित मानस की इन चौपाइयों से स्प्ष्ट गोचर होता है कि सूर्यदेव का मकर राशि में प्रविष्ट होना अर्थात जाना जड़ जंगम व चेतन सृष्टि के लिए मंगलकारी होता है।


संक्रांति-


भारतीय पंचांग में  चंद्रमा की गति पर आधारित कालगणना होती है किंतु सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सूर्य की गति के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

इस प्रकार सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है।इसदिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।


उत्तरायण-


मकर संक्रांति के ही दिन सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते हैं।जिससे दिन बड़े और रात्रि छोटी होतीं हैं।अर्थात तम घटने लगता है और प्रकाश बढ़ने लगता है।सभी प्रकार के शुभ मुहूर्त प्रारम्भ हो जाते हैं।भीष्म पितामह ने आज ही के दिन प्राणत्याग किया था।भगीरथ के प्रयासों से आज ही धरती पर गंगावतरण हुआ था।


शनि प्रकोप से शांति-


पुराणों के अनुसार भगवान भाष्कर की दो पत्नियां थीं।जिनके नाम छाया और संज्ञा थे।छाया के पुत्र शनिदेव व संज्ञा के यमराज थे।शनि बहुत ही जिद्दी स्वभाव के थे।जिनके अनुचित कार्यों से रूष्ट हो पिता सूर्यदेव ने उनका त्याग कर दिया था।जिससे शनि ने अपनी माता को साथ ले पिता सूर्य को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया था।जिससे यमराज बहुत दुखी थे।सूर्यदेव ने भी शनि की राशि कुम्भ को भष्म कर दिया था।जिससे शनिदेव भी बहुत परेशान थे।अंततः यमराज ने उपासना की और पिता सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जब वे मकर राशि में शनि के घर जायेंगें तो शनि की समस्याएं समाप्त हो जायेंगीं।फलतः आज ही के दिन यमदेव जब अपने भाई शनि के घर गए तो शनि की सभी समस्याएं समाप्त हो गईं।शनि ने भी अपने पिता को दिया श्राप वापस ले लिया तथा वचन दिया कि आज के दिन जो लोग सूर्य उपासना करते हुए गुड़,कम्बल,तिल आदि जा दान करेंगें और नदियों में पुण्य स्नान करेंगें उन्हें शनि प्रकोप का भय नहीं रहेगा।


किसानों के लिए महत्त्वपूर्ण-


ठंड से ठिठुरते किसानों,मवेशियों और दुर्बलजनों के लिए मकर संक्रांति का बहुत ही औरकि अलग महत्त्व है।जाड़ा आज से ही घटने लगती है।दिन बड़ा होने लगता है।खेतों ने खरीफ की लहलहाती फसलें किसानों को धनधान्य की अधिक उपज का संकेत देती हैं।जिससे आमजन प्रमुदित होता है।


अन्य नाम-


मकर संक्रांति को समूचे भारतवर्ष,नेपाल, मॉरीशस,त्रिनिनाद टोबैको, सूरीनाम,लंका आदि देशों तथा विश्वभर में रह रहे भारतीयों द्वारा मनाया जाता है।इसे पोंगल,खिचड़ी,बिहू आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है।

प्रयागराज,अयोध्या,काशी,हरिद्वार, उज्जैन,नासिक सहित सभी नदियों में आज के दिन सनातन मतावलंबियों द्वारा स्नान-दान किया जाता है।

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