@ उदय राज मिश्रा
अंबेडकर नगर । पेंशन वृद्धावस्था का आखिरी सहारा और कर्मचारियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है किंतु वर्ष 2004 से केंद्रीय व एक अप्रैल 2005 से उत्तर प्रदेश के सभी शिक्षकों व कार्मिकों को इससे वंचित कर एक बार फिर से बहाली के जुमले कहना अनुचित नहीं होगा कि जहाँ एकतरफ भले ही सियासी सही किन्तु स्वागतयोग्य तो है ही किन्तु सूबे की माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती गुलाब देवी को छोड़कर अन्य दलों व भाजपाई मंत्रियों द्वारा चुप्पी साधना कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात से कमतर नहीं है।
ध्यातव्य है कि पुरानी पेंशन कर्मचारियों एवम शिक्षकों के व्यापक आंदोलनों के प्रतिफल में साठ के दशक में लाभत्रयी योजना के साथ अधिनियमित की गई थी।जिसके तहत शिक्षकों व कर्मचारियों के मूल वेतन का न्यूनतम 10 प्रतिशत व अधिकतम 40 प्रतिशत तक सामान्य भविष्यनिधि के रूप में प्रतिमाह उनके वेतन से कटौती होकर राजकोष में रिटायरमेंट के ठीक 6 माह पूर्व तक जमा होता रहता था।अवकाशग्रहण के समय कर्मचारियों को यह धन वित्तमंत्रालय द्वारा निर्धारित ब्याजदर के साथ एकमुश्त करमुक्त राशि के रूप में मिल जाती थी।इसके अलावा रिटायर होने के समय अंतिम दस महीनों के औसत वेतन के बराबर लगभग कुल वेतन की आधी धनराशि बतौर मासिक पेंशन राजकोष से प्रतिमाह कर्मचारियों के खातों में जाती रहती है।इतना ही नहीं सेवाकाल में मृत्यु,अपंगता या गुम होने की स्थिति में 21 वर्ष की उम्र तक पुत्रों व आजीवन अविवाहित या परित्यक्त पुत्रियों को भी पत्नी के साथ-साथ पारिवारिक पेंशन भी मिलती है,जो समय समय पर परिभाषित रुपये 10000 प्रतिमाह से कम नहीं हो सकती किन्तु वर्ष 1999 से चर्चा और 01 अप्रैल 2005 से उत्तर प्रदेश में अस्तित्व में आयी नवीन पेंशन योजना के क्रियान्वयन और पुरानी पेंशन स्कीम के खात्मे ने सरकारों और शिक्षकों तथा कर्मचारियों के बीच रिश्तों में हमेशा तल्ख वातावरण ही सृजित किया है।यही कारण है कि यूपी में सम्पन्न हुए पिछले आमविधानसभाई चुनावों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा फिरसे पुरानी पेंशन बहाली का वादा जहां जोरशोर से किया गया वहीं योगी महराज की कुंडली मार नीति कर्मचारियों के आंदोलनों के लिए संजीवनी साबित हो रही है।
प्रश्न जहाँतक पुरानी पेंशन के खात्मे के है तो जहाँ भारतीय जनतापार्टी इसके लिए जिम्मेदार ठहराई जा सकती है तो वहीं समाजवादी पार्टी भी कम जिम्मेदार नहीं है।असलियत तो यह है कि समाजवादी पार्टी भाजपा से कहीं ज्यादा गुनहगार है।इसके लिए हमें अतीत पर गौर करने से मालूम होता है कि वर्ष 1999 में केंद्र में अटल बिहारी सरकार द्वारा नवीन पेंशन प्रणाली पर विचारार्थ राज्यों के साथ जो बैठक बुलाई गई थी।उस बैठक में तत्समय सूबे की मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री अशोक बाजपेई बतौर मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि शरीक हुए थे।उक्त बैठक में राज्यों को विकल्प दिया गया था कि राज्य चाहें तो नवीन पेंशन प्रणाली और पुरानी पेंशन प्रणाली दोनों विकल्परूप में या कोई एक का चुनाव करने हेतु स्वतंत्र थे।किन्तु दुखद और काला अध्याय ही कहा जायेगा कि बतौर मुख्यमंत्री प्रतिनिधि अशोक बाजपेयी ने बिना मुलायम सिंह की सलाह के ही नवीन पेंशन प्रणाली को अंडर टेक कर दिया।यहीं से उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों और शिक्षकों के लिए बुरे दिनों का श्रीगणेश होना शुरू हुआ।
ध्यातव्य है कि बैठक से वापस आनेपर जब अशोक बाजपेयी ने उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को बैठक के बाबत बताया तो कहा जाता है कि मुलायम सिंह सन्न रह गए।स्वयम माध्यमिक शिक्षक रह चुके मुलायम सिंह यादव ने अपने ही मंत्री द्वारा अंडर टेक करने के बावजूद नवीन पेंशन योजना को राज्य में लागू नहीं किया।कमोवेश मुलायम के बाद सत्ता में आई मायावती भी एक शिक्षक होने के कारण इसे ठंडे बस्ते में ही डाली रहीं।किन्तु 2012 के चुनावों में सत्ताप्राप्ति के पश्चात उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने ही कर्मचारी विरोधी सलाहकारों के चलते ठंडे बस्ते में पड़ी नवीन पेंशन योजना को पूर्वगामी तिथि 01 अप्रैल 2005 से लागू करने का ऐलान कर दिया।इसप्रकार उत्तर प्रदेश में पुरानी पेंशन के खात्मे और नवीन पेंशन प्रणाली के लागू होने की जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव ही हैं।
दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री बनने से पूर्व स्वयम योगी आदित्यनाथ भी पुरानी पेंशन की बहाली के मुखर समर्थक रहे थे किंतु मुख्यमंत्री बनने के पश्चात उनकी चुप्पी कर्मचारियों के लिए चुभने जैसी है।कदाचित वक्त की नजाकत को भांपते हुए अपनी ही गलती का एहसास करते हुए फिरसे भुलसुधार के निमित्त सत्ताप्राप्ति होने पर पुरानी पेंशन की बहाली की घोषणा के जुमले का शिक्षकों व कार्मिकों ने मुक्तकंठ से स्वागत किया था वहीं राजस्थान,छत्तीसगढ़ और हिमाचल तथा पंजाब सरकारों द्वारा फिर से पुरानी पेंशन की जारी किया जाना निःसन्देह भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों की पेशानी पर बल उत्तपन्न कर रहा है।इस निमित्त माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री का हालिया दिनों में दिया गया बयान कुछ इसी बात का द्योतक कहा जा सकता है।जानकर सूत्रों के मुताबिक स्वयम भाजपा भी इस मुद्दे पर नफा नुकसान का आंकलन कर रही है और बहुत सम्भव है कि आनेवाले कुछ दिनों में पुरानी पेंशन को लेकर वह भी ऐलान कर सकती है।
अंततः इतना कहना ही समीचीन है कि पुरानी पेंशन ही लोककल्याण और बुढ़ापे में कर्मचारियों की लाठी है।जिसकी बहाली ही इसका सर्वश्रेष्ठ समाधान होगा।आज आवश्यकता है कि सभी दल ऐसी घोषणा करते हुए कर्मचारियों के हितों का व्यापक ख्याल रखें अन्यथा भाजपा सहित अन्य दलों की दिल्ली दूर हो सकती है।