Saturday, November 23, 2024
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नेताओं का घटता कद और बढ़ती हैसियत–उदय राज मिश्रा

अम्बेडकर नगर। किसी शायर ने कहा है कि-

“खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले-

खुदा  बंदे  से  खुद  पूँछे  बता  तेरी  रजा  क्या  है।।”

  कदाचित शायर की उक्त उक्ति किसी भी व्यक्ति के कद की सम्यक परिभाषा औरकि उसके महामानव होने की परिचायक है,जोकि उसके श्रेष्ठतम व उच्चतम कद का निर्धारण करती है।जहाँ तक पहुंचने मात्र की कल्पना करने की औकात व हैसियत किसी भी व्यक्ति की पहुँच से परे होती है।

  व्याकरणशास्त्र की दृष्टि में कद शब्द का संकुचित अर्थ किसी वस्तु या व्यक्ति की लंबाई या ऊँचाई, हैसियत और औकात इत्यादि अर्थों में प्रयुक्त होता है।कद को प्रायः हैसियत शब्द का समानार्थक तथा प्रतिष्ठा व पद आदि का द्योतक भी माना जाता है।जबकि व्यापक अर्थ लेने पर हैसियत कहीं भी कद के दाएं बाएं नहीं ठहरती।इसप्रकार निःसन्देह यह कहा जा सकता है कि जिसका कद बड़ा वह व्यक्ति बड़ा।हैसियत कद से बड़ी नहीं हो सकती।

  भारतीय दर्शन सदैव आत्मदीपो भव की शिक्षा के साथ आत्मतत्व के जागरण और मानवीय मूल्यों का संरक्षण तथा सम्वर्धन करने वाले प्राणतत्त्व स्वरूप नैतिक आदर्शों के अनुपालन तथा अनुशीलन का संदेश देते रहे हैं।यहां सांसारिक शक्तियों की तुलना में आध्यात्मिक व चारित्रिक  शक्तियों को सदैव प्रधानता दी जाती रही है।भारतीय दर्शन भी दण्डनीति के सिद्धांतों का वर्णन करते हुए राजनीति को जनोपयोगी और परोपकारी होने को ही महत्त्वपूर्ण मानती है।किन्तु बीते हुए कालखण्डों में स्वाधीनता प्राप्ति के बाद जिस तेजी से राजनेताओं के नैतिक पतन की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है,उससे उभरते हुए नव सामंतवाद की बू सी आती है।

  प्रश्न जहाँतक कद और हैसियत का है तो कद उसी व्यक्ति का ऊँचा होता है जो चरित्रवान,दयावान,उदार,राष्ट्रभक्त,समदर्शी और भ्रष्टाचारी नहीं होता है।कद के लिए सांसारिक साधनों व जमीन,जायदाद,धन,शक्ति और सामर्थ्य की बनिस्पत उत्तम नैतिक चरित्र,विचारों की दृढ़ता,निर्णय लेने की क्षमता और उदारमना प्रवृत्ति की आवश्यकता होती है।कर्तव्यनिष्ठा,सत्यशीलता और सबकुछ राष्ट्र पर न्यौछावर करने की भावना और जनजन के कल्याण हेतु आत्मोत्सर्ग करने की प्रवृत्ति ही किसी व्यक्ति के कद का निर्धारण करती है न कि उसकी हैसियत।

  स्वतंत्रभारत में लालबहादुर शास्त्री,अटल बिहारी बाजपेई, डॉ राधाकृष्णन,डॉ राजेन्द्र प्रसाद,डॉ शंकर दयाल शर्मा,डॉ अब्दुल कलाम,कमलापति त्रिपाठी इत्यादि ऐसे अनेक जीवंत उदाहरण हैं ।जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी,पारिवारिक पृष्ठभूमि राजाओं जैसी नहीं थी किन्तु उन्होंने अपने कृत्तित्व आए ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किया जो पूरी दुनियां की हैसियत से ऊपर है,बड़ी है।कद और हैसियत में फर्क समझने के लिए इतना ही काफी है कि आज पूरी दुनियां की संपत्ति देकर भी कोई “बापू” या “नेता जी” अथवा “सरदार” याकि “आज़ाद” की उपाधियां नहीं खरीद सकता।उद्योगपति व धनकुबेर लाख कोशिश करके भी आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस या सरदार पटेल या चन्द्र शेखर आज़ाद की उपाधियां नहीं खरीद सकते।जिससे स्प्ष्ट होता है कि कद कभी भी हैसियत का परिचायक नहीं हो सकता।किन्तु कदाचित आज भारतीय राजनीति में जर,जोरू,जमीन ही हैसियत निर्धारण कर रहे हैं,जोकि विचारणीय यक्ष प्रश्न है।

  वस्तुतः राजनैतिक,सामाजिक और आर्थिक समृद्धि ही हैसियत व कद की परिचायक मानी जाती है किंतु लोग भूल जाते हैं कि बिना उत्तम नैतिक चरित्र और आत्मबलिदान की भावना के बिना हैसियत कभी भी कद का स्वरूप धारण नहीं कर सकती।आज भी हैसियत की दृष्टिकोण से लगभग सिफर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद   किसी भी उद्योगपति या अन्य राजनेता से बहुत ऊपर है।भारत में आज भी ऐसे बहुत से कद्दावर राजनेता हैं किंतु राजनीति में दिनोंदिन होती गिरावट व नेताओं द्वारा येनकेन अधिक से अधिक धन,सम्पत्ति अर्जित करने की प्रवृत्ति जहां भ्रष्टाचार की जननी बनती जा रही है वहीं लोग अनैतिक रूप से कमाकर धनी हुए गुंडों और लफंगों को ही वास्तविक प्रतिनिधि मानने लगे हैं जबकि ये खोटे सिक्के से अधिक नहीं हैं।

  अंततः यही प्रासङ्गिक औरकि समीचीन है कि अब राजनैतिक दलों को वोट देने की बजाय योग्य उम्मीदवारों को जिताया जाय।जब दल हारेंगें और अच्छे लोग जीतेंगे तो कद्दावर राजनेताओं से राष्ट्र का भी कद वैश्विक पटल पर बढ़ेगा।जिससे हैसियत स्वत्:बढ़ेगी।अन्यथा ओछी राजनीति सदैव अपनी हैसियत की औकात का भौकाल बनाकर अपने दिखावे को ही अपना कद मानती हुई रहनुमाई का दावा करती रहेगी।

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