Saturday, November 23, 2024
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डिम्पल यादव के सामने रघुराज शाक्य, क्या कहता है मैनपुरी राजनैतिक समीकरण


◆ यादव बनाम शाक्य लड़ाई होने का अनुमान, समीकरण बिठाने में जुटे दिग्गज


◆ मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव ने महज 94,389 मतों से जीता था चुनाव


लखनऊ। मैनपुरी उपचुनाव के उपर पूरे देश की निगाहें टिकी है। यह सपा की परम्परागत सीट रही है। यहां से पार्टी ने डिम्पल यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने शिवपाल यादव के करीबी कहे जाने वाले रघुराज शाक्य को टिकट दिया है। ऐसे में मैनपुरी का मुकाबला काफी रोचक हो गया है। यहां के चुनावी समीकरण पर सभी की निगाहें टिकी हुई है।


क्या कहता है मैनपुरी का जातीय समीकरण


मैनपुरी में सबसे ज्यादा संख्या यादव वोटर्स की है। जिनकी संख्या करीब 4.25 लाख बताई जा रही है। इसके बाद शाक्य 3.25 लाख वोटर्स है। तीसरे नम्बर पर ब्राहमण वोटरों की संख्या करीब 1.10 लाख है। जो बीजेपी के वोटर माने जाते है। दलित 1.20 व लोधी 1 लाख के करीब है। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 55 हजार बताई जा रही है। अगर बीजेपी ब्राहमण व शाक्य वोटरों को अपने पाले में करने के साथ अगर दलित व लोधी वोटरों में भी सेंध लगाने में सफल हो जाती है तो सपा की राह इस सीट पर आसान नहीं होगी।


रघुराज को माना जाता है शिवपाल का करीबी 


रघुराज शाक्य को शिवपाल यादव का करीबी माना जाता है। यूपी चुनाव 2022 के पहले उन्होने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इससे पहले वह प्रगतिशील समाजवार्दी पार्टी में प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर थे। रघुराज 1999 व 2004 में सपा के टिकट पर इटावा से सांसद चुने गये। 2012 में उन्होने इटावा सदर सीट से चुनाव जीता था। इस बार 2022 वह इटावा सदर से विधानसभा का टिकट सपा से मांग रहे थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। जिसके बाद उन्होने भाजपा ज्वाईन कर ली थी।


पिछली बार मुलायम को मिली थी भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य से टक्कर 


पिछले चुनाव में मुलायम सिंह यादव को भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य से कड़ी टक्कर मिली थी। मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव ने चुनाव महज 94,389 मतों से जीता था। जबकि पिछली बार यह चुनाव मुलायम सिंह यादव का अंतिम चुनाव माना जा रहा था। इसलिए भाजपा का कोई बड़ा नेता यहां प्रचार करने के लिए नहीं गया। इसके बाद भी प्रेम सिंह शाक्य ने उन्हें टक्कर दी थी।


शिवपाल की नाराजगी दिखा सकती है असर :


शिवपाल यादव की नाराजगी सपा के परम्परागत वोटरों पर असर दिखा सकती है। शिवपाल यादव खुलकर सामने भी न आये इसके बाद भी वह सपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते है। अब यहां देखने योग्य होगा कि सपा इसे मैनेज कैसे करती है।

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