अंबेडकर नगर। जनपद मुख्यालय स्थित बी.एन.के.बी. पी.जी. कॉलेज और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्त्वावधान में आज़ादी के अमृत वर्ष में ‘काकोरी क्रांति :अमर शहीद नायकों का श्रद्धा-पर्व’ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ काकोरी के नायकों की प्रतिमा पर पुष्प अर्पण करके किया गया। इस अवसर कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. शुचिता पांडेय, मुख्य वक्ता डॉ. अजीत प्रताप सिंह, वरिष्ठ सहायक आचार्य, रमाबाई राजकीय महिला महाविद्यालय, अकबरपुर, प्रो. सत्यप्रकाश त्रिपाठी विभागाध्यक्ष हिंदी और डॉ.शशांक मिश्र, समन्यवक, आई.क्यू.ए.सी.बी.एन. के.बी.पी.जी. कॉलेज उपस्थित रहे।
इस अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. शुचिता पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि देश के युवाओं से जुड़ने और उनमें देशभक्ति की गहरी भावना पैदा करने के उद्देश्य से, संस्कृति मंत्रालय ने अमृत महोत्सव से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने और देश के युवाओं को आगे आने और हमारे लोकतंत्र की सच्ची भावना को आत्मसात करने तथा भारत की आजादी के 75 साल पूरे जोश के साथ मनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
डॉ. अजीत प्रताप सिंह ने काकोरी क्रांति और उनके नायकों को याद करते हुए कहा किवास्तव में काकोरी कांड सिर्फ खज़ाना लूटने की घटना मात्र नहीं थी। वह बड़ा जिगर रखने वाले क्रांतिकारियों द्वारा अँग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती थी। भारत के स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड का एतेहासिक महत्व है। असहयोग आंदोलन की असफलता के बाद देश में हताशा का माहौल था। युवा चाहते थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध कुछ सक्रियता दिखाई जाये। ऐसे समय में राम प्रसाद बिस्मिल ने एक क्रांतिकारी संगठन का गठन किया जिसका नाम हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संगठन रखा। गया। चन्द्रशेखर आज़ाद, अशफाक़ उल्लाह खान, राजेंद्र लाहीड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्र नाथ सनयाल जैसे क्रांतिकारी इसके साथ जुड़े। गांधी जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस उस समय तक पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग के विचार से दूर थी। इन क्रांतिकारियों ने अपने संगठन के संविधान में ‘स्वतंत्र भारत में प्रजातन्त्र की अवधारणा’ का स्पष्ट विचार प्रस्तुत करके अंग्रेजों को खुली चुनौती दे दी।
महाविद्यालय के समन्यवक, आई. क्यू. ए. सी. डॉ. शशांक मिश्र ने अपने स्वागत एवं बीज वक्तव्य में आये हुए अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि काकोरी कांड सिर्फ एक ट्रेन डकैती नहीं थी,वह भारत निर्माण का ध्येय रखने वाले उस समय के भारतीय नौजवानो की सशस्त्र क्रान्ति थी। भारत को अंग्रेजों से नहीं अंग्रेज़ियत से मुक्ति दिलाना क्रांतिकारियों का उद्देश्य था। वह सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल नहीं था बल्कि अँग्रेजी सभ्यता द्वता पुष्पित-पल्लवित की जा रही व्यवस्था के खिलाफ एक आवाज़ थी।
कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन सांस्कृतिक सचिव वागीश शुक्ल और धन्यवाद इतिहास विभागाध्यक्ष विवेक तिवारी ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी शिक्षकगण, कर्मचारीगण, एन. सी. सी. के कैडेट, एन. एस. एस. के स्वयंसेवक और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।