Wednesday, November 27, 2024
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क्या डिम्पल बचा पायेंगी सपा का अभेद्य दुर्ग मैनपुरी अथवा यहां खिलेगा कमल

लखनऊ। वर्तमान में सबकी निगाहें सपा के संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर है। यह सीट सपा का अभेद्य दुर्ग बताई जाती है। यहां से मुलायम सिंह की बड़ी बहू डिम्पल यादव सपा की प्रत्याशी है। वहीं भाजपा मुलायम की छोटी बहू अर्पणा यादव को मैदान में उतार सकती है। अगर ऐसा होता है तो यहां होने वाला मुकाबला काफी दिलचस्प हो जायेगा। इसके न होने पर भी सपा की डगर इतनी आसान नहीं है। शिवपाल के रुख से भी सपा की दिक्कतें यहां बढ़ी हुई है। अखिलेश यादव के सामने अपना परिवारिक व पारम्परिक मत को संजोए रखने की बड़ी चुनौती यहां से सामने आ रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि सपा क्या इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएगी अथवा यहां पर कमल खिलेगा।
मैनपुरी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी 1996 से लगातार जीती आ रही है। उसने 7 बार चुनाव जीता है और दो उपचुनाव भी जीते है। 2004 में जब मुलायम सिंह यादव ने यहां से इस्तीफा दिया तो धर्मेंद्र यादव ने यहां से जीत दर्ज की। 2014 में मुलायम ने जब यह सीट छोड़ी तो उनके पौत्र तेज प्रताप यादव यहां से सांसद चुने गए थे। इस बार भी तेज प्रताप यादव को ही टिकट मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही थी। परन्तु उनका टिकट कटना सपा को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे पारिवारिक अंर्तकलह और बढ़ सकती है। सपा में अखिलेश की खिलाफत करने वाले एक मंच पर आ सकते है। भाजपा भी कुछ इसी तरह की रणनीति बनाने में जुट गयी है।
वही अगर चुनावी गणित की बात करें तो मैनपुरी लोकसभा सीट में 5 विधानसभा आती हैं। जिसमें, मैनपुरी, भोगांव किशनी करहल तथा जसवंतनगर है। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने केवल भोगांव सीट जीती थी। परंतु 2022 के चुनाव में भाजपा ने बढ़त बढ़ाते हुए भोगांव और मैनपुरी 2 सीटें जीतने में सफल रही। समाजवादी पार्टी के पास वर्तमान में किशनी, करहल व जसवंतनगर सीट है करहल से अखिलेश यादव विधायक व जसवंत नगर से शिवपाल विधायक है। ऐसे में मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए शिवपाल यादव का रूप काफी मायने रखता है। परंतु जिस प्रकार गोरखपुर में शिवपाल ने बयान दिया। उसे साफ नजर आता है कि अखिलेश यादव के परिवार में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। इससे पहले भी अखिलेश और शिवपाल की दूरियां जगजाहिर है। वही लगातार समाजवादी पार्टी को मिल रही हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा हुआ है। भाजपा कार्यकर्ता लगातार मिल रही जीत से उत्साहित हैं। सत्ता दल होने के कारण कुछ प्रतिशत मतों का रुझान भाजपा की तरफ हो सकता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए मैनपुरी सीट को बचाना किसी चुनौती से कम नहीं साबित होगा।

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